हमने कभी सुरों को सरहदों
की सीमाओं में नहीं बांधा।हमने तो संगीत को फिजाओं में घोल दिया हैं।अगर कोई हमारी
आवाज से आवाज मिलाना चाहता हैं तो उसका स्वागत होना चाहिए।सुर क्षेत्र एक टीवी
कार्यक्रम हैं। इस शो में पाकिस्तान और हिन्दुस्तान की प्रतिभाओं को अपनी प्रतिभा
दिखाने का मौका मिल रहा हैं।होना तो यह चाहिए था कि संगीत के माध्यम से दोनों
देशों के बीच प्रेम,शांति और सदभाव का प्रसार होता।मगर संगीत में राजनीति की
दखलंदाजी ने इसे बहस का मुद्दा बना दिया हैं।
राज ठाकरे के बयान के जवाब में संगीत की कोई
सरहद नहीं होती कह कर आशा भोंसले ने उन्हें टका सा जवाब दे दिया हो लेकिन सवाल अभी
बाकी हैं। पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति दी जानी चाहिए या
नहीं?सवाल जेरे बहस इसलिए भी है क्योंकि पाकिस्तान में
हमारे देश के कलाकारों पर प्रतिबंध लगा हुआ है।वहां उनका इस तरह से मान-सम्मान व
स्वागत नहीं होता।
विवाद भले ही ठंडा हो गया हो लेकिन मैं यहां
शिवसेना की बात को बहुत हद तक सही कहूंगा कि जब बहुत सारे भारतीय कलाकार मौजूद हैं
उन्में पर्याप्त प्रतिभाएं हैं, जो मौके की तलाश में हैं उन्हें मौका देना चाहिए।क्योंकि
जिन लोगों को पहले मौका देने की बात की जा रही हैं ये वही लोग हैं जिन्होंने आपको
इस मुकाम पर पहुंचाया हैं।अपने देश में पल रही प्रतिभाओं की अनदेखी करना उचित कदम
कतई नहीं माना जा सकता।ऐसा पहली बार नहीं हो रहा कि पाकिस्तानी कलाकार भारत में
दिखाए जाने वाले शो का हिस्सा बनने जा रहे हैं। लाईफ-ओके चैनल पर दिखाए गए काँमेडी
शो में कई पाकिस्तानी कलाकार मौजूद थे।इसे देखते हुए लगता तो यही हैं कि ये शोरगुल
इस कार्यक्रम के लिए टीआरपी जुटाने का हथकंडा हो सकता हैं।
आजकल चैनलों पर इतने सारे रियलटी शो हैं जो
टीआरपीको बढावा देने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।अगर यह प्रचार का हिस्सा
नहीं हैं तो यह विरोध गैर जरूरी मुद्दा हैं।कला और कलाकार को किसी सरहद में नहीं
बांधा जाना चाहिए। लेकिन राज ठाकरे,शिवसेना व अन्यलोगों व्दारा दिए गए बयानों ने
इसे एक राजनीतिक मुद्दा अवश्य बना दिया हैं । वजह चाहे जो भी हो पहल एक तरफा नहीं
होनी चाहिए।केवल उन्हीं पाकिस्तानी कलाकारों का स्वागत हो जिनमें यह कहने का बूता
हो कि उनके देश में भारतीय कलाकारों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाना गलत हैं।
तरूण कुमार (सावन)
ड़ीएलए समाचार पत्र में 2अक्टूबर 2012 को प्रकाशित
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