रंग-ए-जिंदगानी
गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014
खोई खोई सी,रोयी रोयी भी हैं
जिसके सम्मोहन में पागल ब्रजधाम भी हैं,ब्रजवासी भी हैं।
जिसकी प्रेम दिवानी राधा रानी भी हैं,मीरा दासी भी हैं।
पहले राधा संग रास रचाया,फिर विरह का पाठ पढ़ाया
प्रेम की रज़ रचाकर दुनिया
,
खोई खोई सी
,
रोयी रोयी भी हैं।
तरूण कुमार,सावन
1 टिप्पणी:
संजय भास्कर
29 अक्तूबर 2014 को 11:20 pm बजे
सच कहती पंक्तियाँ .
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कुछ रिश्ते अनाम होते है:) होते
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