Powered By Blogger

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

पंडित जी तो झेंप गए....


इस बार दीवाली पर हर बार की तरह लक्ष्मी पूजन का आयोजन किया गया।पंडित जी आए और पूजा शुरू की गई,एक-एक करके सभी कार्य विधि-विधान से सम्पन्न हुए।जब आरती लेने का वक्त आया तो सबसे पहले हमारे बाँस ने आरती ली और पाँच सौ का नोट थाली में रख दिया।इसके बाद वहां के सुपरवाइजर और मैनेजर ने भी वही किया आरती ली और सौ का नोट थाली में रख दिया।
इसके बाद निचले क्रम के कर्मचारियों की बारी आयी। जैसे ही पहला कर्मचारी थाली में बिना कुछ डाले आरती लेकर चलने लगा,तभी पंडित जी तुरंत बोल पडे,बेटा हाथ में कुछ लेकर आरती लो तभी मां प्रसन्न होगी।उनके इतना कहते ही हम सभी के हाथ अपनी-अपनी जेबों में चले गए और सबने आरती ले ली ।
इस सब के बाद जब पंडित जी जाने लगे तो दरवाजे पर खडे चपरासी ने उन्हें रोका और बोला ,पडित जी आपने थोडे से पौसों के लिए अपनी प्रतिष्ठा गंवा दी।पंडित जी सबकुछ समझ गए और आंखें नीची करके वहां से चुपचाप निकल गए।मैं पास ही खडा होकर यह सब देख रहा था।मैं उसके पास गया और उसके कंधे पर हाथ रखकर उत्साह से उसे देखा , तो उसने पूछा , बाबूजी हम इंसानों की तरह क्या मां पैसों की भूखी हैं?मैंने सिर हिलाकर ना में उत्तर दिया और वहां से निकल गया ।
                  तरूण कुमार (सावन)

5 टिप्‍पणियां:

  1. पैसे की माया छायी है दिल दिमाग पर
    बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं
  2. काश हर कोई समझ सके कि भगवान पैसों के नहीं भाव के भूखे होते हैं
    सुन्दर लघु कथा !

    जवाब देंहटाएं
  3. पंडित जी ने जो किया सो उनकी पेशेगत तरकीबें है. उनके जीविकोपार्जन का साधन है ...रही बात भक्तों की तो धर्मान्धता से परे होकर जैसा उचित लगे वैसा ही करना चाहिये. ईश्वर तो कण कण में विराजमान है..

    उत्तम एवं सोचनीय लघुकथा....

    जवाब देंहटाएं