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रविवार, 5 मार्च 2017

कहानी- बेमौसम बरसात



वसुंधरा (धरती) कहती हैं, वारिद (बादल) क्या हम तुम अब कभी नहीं मिलेंगे?,
धरती और बादल तो कभी नहीं मिलें। यह तो तभी तय हो गया था, जब तुम्हारे माँ-बाप ने तुम्हारा नाम वसुंधरा रखा था, मेरे अब्बू-अम्मी ने मेरा नाम वारिद रखा था। जब तक तुम वसुंधरा रहोंगी और में वारिद हम इस जन्म में तो क्या किसी भी जन्म में नहीं मिल सकते। यह कहते-कहते.........
वारिद वसुंधरा के मेहँदी रचें हाथों को अपने हाथों में थाम कर अश्क उगलती आँखों पर रख लेता हैं। वसुंधरा की विरह में तपती हुई मेहँदी का रंग हलका पड़ने लगता हैं। हाथ हठा कर वारिद वसुंधरा की आँखों में देखता हैं, जहाँ पीर नीर बनकर  बह रहीं थी। प्रेम का तिस्कार करने वाले समाज के प्रति प्रतिशोध पल रहा था। वारिद, यह देखकर डर जाता हैं, हाथ आगे बड़ा कर वसुंधरा के आँसू पोछ देता हैं।
और कहता हैं, वसुंधरा तुम मुझसे एक वादा करों। कि, आज के बाद तुम कभी आँसू नहीं बहाओंगी न किसी को बहाने दोगी। सदा खुश रहोंगी, खुशियाँ बटोंगी
नहीं वारिद नहीं......... ऐसा नहीं हो सकता। जो समाज दो प्रेमियों को मिलने नहीं देता वो समाज फूलों का सम्मान कैसे करेंगा भला?  जहाँ संस्कारों में नफ़रत बाटी जाएं उन संस्कारों का तिस्कार होना ही चाहिए। जहाँ प्रेम को तिस्कार मिले उन संसार का मिटना ही अच्छा।
वारिद- जो नफ़रत के बदले नफ़रत बाटें वो प्रेम नहीं हो सकता। जो दर्द के बदले दर्द बाटें वो प्रेम नहीं हो सकता। जो आँसू के बदले आँसू बाटे वो प्रेम नहीं हो सकता। जो काँटों के बदले काँटें दे जो धरा को फूलों से वंचित कर दे वो प्रेम नहीं हो सकता। जो तन्हाईयों के बदले तन्हाई बाटें वो प्रेम नहीं हो सकता। क्या इतनी नफ़रत मन में धरकर, प्रेम कर पाओंगी मुझसे?
वसुंधरा- फ़िर किसे कहते हैं प्रेम? कहों वारिद।
वारिद- जो कांटों के बीच फूल खिला दे वो प्रेम हैं। जो नफ़रत की ख़ाई को प्रेम से पाटे वो प्रेम है। जो तन्हाईयों को बाटें वो प्रेम हैं। प्रेम कोई ठोस वस्तु नहीं वह तो बस एक अहसास हैं। जो तुम्हें मुझसे जोड़ता हैं, मुझे तुम से जोड़ता हैं।
वसुंधरा- तो क्या मेरी आँखे सदा के लिए रूआँसी ही रह जाएँगी।
वारिद- नही वसुंधरा ऐसा नहीं होगा, मेरा वादा है तुमसे, तुम्हारी आँख का आँसू बनकर मैं सदा    बहता रहुँगा। तुम सीप की तरह मेरे आँसुओं को मोती बना कर रख लेना। इन मोतियों के मोल को सदा बाटती रहना इस संसार को। ताकि आने वाले कईं युगों तक लोग न भूल पाए, वारिद और वसुंधरा प्यार को।
यह कहते हुए वारिद ने वसुंधरा गले लगाया, अलविदा कहने के लिए। इस बार आँसू वसुंधरा की आँखों में नहीं, वारिद की आँखों में थे।
जब से लेकर आज तक तब-तब वसुंधरा तपी हैं, जब-जब वारिद रोया हैं। मौसमों के बन्धनों को            तोड़कर भी। कहानी लगभग ख़त्म हो गईं थी, एक सच्ची कहानी, वारिद और वसुंधरा की कहानी। बस अन्त बाक़ी था।
मैं पार्क में बैठा कुछ सोच रहाँ था, तभी बेमौसम बरसात होने लगी। एक बच्चे ने मुझसे पूछा, अंकल ये बेमौसम बरसात क्यों होती हैं? उस छोटे बच्चे के मासूम सवाल का ज़बाव तो मैं नहीं दे पाया। जबाव था मेरे पास लेकिन उस बच्चे मे समझने की क़ाबलियत नहीं थी। हाँ इस जबाव के साथ कहानी अवश्य पूरी हो गईं थी।   
आज फ़िर वसुंधरा का मन सूखा हैं, आज फिर वारिद रोया हैं वसुंधरा की याद में।
आँसूओं का कोई रँग नहीं होता, आँसूओं का कोई मौसम नहीं होता।
बेमौसम बरसात भी बेवज़ह नहीं होती।    
तरूण कुमार, सावन



गुरुवार, 26 जनवरी 2017

कविता- योगी के भेष में भोगी पुजें




 राम राज्य का सपना हो आँखों में,
 और रावण के हाथों में प्रबंधन हो।
  ऐसे हालातों में कहों कैसे,
 जन गण मन गण का अभिनंदन हो।
 सीता को ढुढने कौन जाए जब,
 दशानन की कैद में रघुनंदन हो।
 सती-सावित्री कुलटा कहलाए,
 जिस देश का राजा स्वयं दुर्योधन हो।
 बढे भाई सिंहासन पाने के अभिलानी हो,
 छोटों से उम्मीद करें वे लक्ष्मन हो।
 गोकुल में दूध दही की रक्षा कौन करे,
 जब माखनचोर का कंस से घठबंधंन हो।
 सर्प और सपोलो के विश दंश से मुक्त हो
 तो निरवल के माथे पर भी चंदन हो।
 ऐसे हालातों में कहों कैसे,
 जन गण मन गण का अभिनंदन हो।।

 वेद मंत्र बाँचने वालों के होंटों पर,
 जातिवादि अमर्यादित प्रवचन हो।
 बाँची न हो जिन्होंने कुरान,
 उन कंठों से राष्ट्र गान का मानमर्दन हो।
 योगी के भेष में भोगी पुजें,
 सुविधा सम्पन्न विलासी जीवन हो।
 सदाचार का पाठ पढ़ा भविष्य
 उज्जवल बनाने वाले बलात्कारी हो।
 नारी का तन साड़ी को तरसे
 देश का हर तरूण बालबृह्रमचारी हो।
 भूत से वर्तमान को संकट हो,
 आने वाला भविष्य दिशाहिन हो।
 ऐसे हालातों में कैसे,
 जन गण मन गण का अभिनंदन हो।।
            
 फूल-फूल पर कांटों की पहरेदारी हो,
 वन उपवन महकाने की जिम्मेदारी हो।   
 पाषाणों के ह्रदय से भी फुटे आँसू
 पत्थर को पत्थर कहने की नादानी हो।
 कोयल के कंठों में हो व्याकुलता
 गीत मिलन के गाने की लाचारी हो।
 नैनों में नीर भरी बदली हो
 मरूस्थल में बरसता सावन हो।।
 ऐसे हालातों में कैसे,
 जन गण मन गण का अभिनंदन हो।।

द सी एक्सप्रेस समाचार पत्र में प्रकाशित
                      
तरूण कुमार, सावन

                           
 

                          

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016

कविता - नया साल



ग्रहों की चाल देखकर क्या कोई हाले दिल बताएँगा

मजिंल का पता शायद आने वाला साल बताएँगा



प्यार की लाली ही क़ाफ़ी है

फ़ागुन का गुलाल रहने दो

अपने हाथों का क़माल रहने दो

हमें ये मलाल रहने दो

हमारे हिस्सें में ज़न्नत हैं तो ज़मीं पर क्यूँ

नहीं मिलती ये सवाल रहने दो

तुम्हारे बिन जो गुज़र रहें हैं दिन

उनका हाल-चाल रहने दो



जो टूटकर गिरा हैं आँख से वो ही हाल बताएँगा

हमारा हाल-चाल क्या गुजरा हुआ साल बताएँगा



किसी के बालों में उलझे हैं
मछली का ये जाल रहने दो

ख़त भेजा हैं ख़त का ज़वाब

दें देना, ये मोबाईल रहने दो

चूप-चूप मेरी आवाज़ सुनने का

ये बहाना भी अच्छा है

सीधें कॉल कर लेना

अब ये मिस कॉल रहने दो



तुम्हें पाकर हुआ हैं जो मालामाल बताएँगा

हमारे दिल का हाल अब नया साल बताएँगा



तरूण कुमार, सावन