सावन आया सजनें लगें
मेले, तो राख़ी याद आती हैं।
बहना हैं ससुराल
में, सुने हुए झुले, तो राख़ी याद आती हैं।
कल तक थी माँ-बाप की
छाओं में, अब सास-ससुर के गाओं में
जब घर की याद आता
हैं, तो माँ की याद आती हैं।
जब बहना याद आती
हैं, तो राख़ी याद आती हैं।
बहना के हाथ का रोली
चावल चंदन करें माथे का अभिनंदन।
सजाएं कलाई पर
कच्चें धागों में पक्कें का प्रेम सच्चा बंधंन।
कल तक खेल रहीं थी
घर के आँगन में, अब पिया के प्रांगण में
जब दीया याद आता
हैं, तो वाती याद आती हैं।
जब बहना याद आती
हैं, तो राख़ी याद आती हैं।
तरूण कुमार, सावन
चित्र-Google
बहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : ऐसी तो न थी जिंदगी : इतिहास के दुखद पन्ने
bahut sundar ...
जवाब देंहटाएंसुंदर ।
जवाब देंहटाएंप्यारी सी रचना ........आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत भावमयी प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
बेहद शानदार रचना की प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंश्री गणेश जन्मोत्सव की मंगलकमनाएं
bahut sundar kavita!
जवाब देंहटाएंबढ़िया
जवाब देंहटाएंशानदार रचना है
जवाब देंहटाएंsundar rachna
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