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शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

राख़ी याद आती हैं


सावन आया सजनें लगें मेले, तो राख़ी याद आती हैं।
बहना हैं ससुराल में, सुने हुए झुले, तो राख़ी याद आती हैं।
कल तक थी माँ-बाप की छाओं में, अब सास-ससुर के गाओं में
जब घर की याद आता हैं, तो माँ की याद आती हैं।
जब बहना याद आती हैं, तो राख़ी याद आती हैं।

बहना के हाथ का रोली चावल चंदन करें माथे का अभिनंदन।
सजाएं कलाई पर कच्चें धागों में पक्कें का प्रेम सच्चा बंधंन।
कल तक खेल रहीं थी घर के आँगन में, अब पिया के प्रांगण में
जब दीया याद आता हैं, तो वाती याद आती हैं।
जब बहना याद आती हैं, तो राख़ी याद आती हैं।
                           
                 
                तरूण कुमार, सावन
                 चित्र-Google  

16 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुंदर रचना की प्रस्‍तुति।

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  2. सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....

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  3. बेहद शानदार रचना की प्रस्‍तुति।

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  4. बहुत सुन्दर रचना
    श्री गणेश जन्मोत्सव की मंगलकमनाएं

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