सावन आया सजनें लगें
मेले, तो राख़ी याद आती हैं।
बहना हैं ससुराल
में, सुने हुए झुले, तो राख़ी याद आती हैं।
कल तक थी माँ-बाप की
छाओं में, अब सास-ससुर के गाओं में
जब घर की याद आता
हैं, तो माँ की याद आती हैं।
जब बहना याद आती
हैं, तो राख़ी याद आती हैं।
बहना के हाथ का रोली
चावल चंदन करें माथे का अभिनंदन।
सजाएं कलाई पर
कच्चें धागों में पक्कें का प्रेम सच्चा बंधंन।
कल तक खेल रहीं थी
घर के आँगन में, अब पिया के प्रांगण में
जब दीया याद आता
हैं, तो वाती याद आती हैं।
जब बहना याद आती
हैं, तो राख़ी याद आती हैं।
तरूण कुमार, सावन
चित्र-Google