गड़तंत्र दिवस हर
साल मनाने मज़बूरी हैं।
रात अभी अँधेरी है,
आज़ादी अभी अधूरी है।
सवाल दो वक़्त की
रोटी का जबाव जलेबी है।
दिन-रात की मेंहनत
चंद हाथों में गिरबी है।
नाप रहें हैं लेकर
फीता संसद की धेरी पर
भूख बड़ी गरीब से,
भूखों से बड़ी गरीबी है।
राम राज्य की बाते
कितनी कोरी है
रात अभी अँधेरी है,
आज़ादी अभी अधूरी है।
फूल अपने बता रहें
हैं, गरीबों को कांटे चुभा रहे है
सत्ता की चाभी कुछ लोग
आपस में घुमा रहें है
अन्न उगलती धरती,
कारखानो में जलती गरीबी है
नेता सारे, धन की
देवी को अपनी भाभी बता रहें है
जनता क्या हैं वो तो
बेचारी गंधारी है
रात अभी अँधेरी है,
आज़ादी अभी अधूरी है।
तरूण कुमार `सावन`
सच में भारत की वास्तविक स्थिति यही है कि आजादी अभी अधूरी है, उम्दा पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंउम्दा....बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
सटीक और सुन्दर प्रस्तुति ,बधाई आपको l
जवाब देंहटाएंनेता और भ्रष्टाचार!
आज के यथार्थ को चित्रित करती सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंये आज़ादी अधूरी ही है जब तक असल तंत्र नहीं आ जाता ... स्वराज नहीं आ जाता ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास
सुन्दर प्रस्तुति ,बधाई आपको l
जवाब देंहटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी भाव .........सुन्दर लेखनी!
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